शनिवार, 14 सितंबर 2013

हिंदी दिवस - परिचर्चा

लीजिये महाशय, आ ही गया हिंदी दिवस! चूंकि हिंदी  अनपढ़ों, गंवारों एवं मूर्खों की भाषा है, बहुत ही कम लोगों को इसकी जानकारी है। आप यह कदापि ना समझें की मैं व्यंग कर रहा हूँ। यह कटाक्ष है हमारी उस युवा पीढ़ी पर जो आंग्ल-भाषा (English) के २-३ शब्द बोल कर स्वयं को श्रेष्ठ और हिंदी-भाषियों को क्षुद्र समझती है। भले ही वे एक पूरा वाक्य आंग्ल-भाषा में ठीक से ना लिख पाएं। मेरे कार्यालय में मेरे सहकर्मियों को मेरे हिंदी प्रेम से विशेष आपत्ति है। 
चलिए, बात करते हैं हिंदी की स्थिति पर। शुरुआत करते हैं अपने ही आस-पास से। किसी के भी आगे जाकर बोल दीजिये "भाग्य की भी क्या विडंबना है"। वो आप पर तुरंत हंसने लगेगा। विडंबना शब्द में गाम्भीर्य नहीं हास्य है। जहां आपने २-३ शुद्ध हिंदी के शब्द अपने मुख से निकाल दिए, वहीँ आपकी खिल्ली उडनी शुरू। यूनिवर्सिटी जाना है? किसी रिक्शा वाले को कहिये की विश्विद्यालय जाना है। वो आपके मुख को ऐसे घूरेगा जैसे आप मंगल ग्रह से आये हों। फिर वो पूछेगा कहाँ जाना है? तब आप कहें की यूनिवर्सिटी जाना है। फिर वो आपको ले चलेगा। आप अंग्रेजी बोलने में गलती कर दीजिये, फिर देखिये कैसे आप उपहास का पात्र बनते हैं। आप सुनेंगे की कोई मद्धम वाणी में कह रहा है, देखो तो गंवार को, इसे इंग्लिश भी नहीं आती। यदि वे स्वयं हिंदी बोलने में या लिखने में त्रुटी कर रहे हैं, इसका बखान वे अत्यंत प्रसन्न होकर करते हैं कि जी हमें तो हिंदी नहीं आती! कैसा विरोधाभास है? आपसे किसी ने कभी समय पूछा है? अवश्य ही नहीं। टाइम पूछा होगा। आप किस कक्षा में पढ़ते हैं? नहीं। किस क्लास में पढ़ते हैं। आपके घर कभी बिजली या विद्युत् जाती है? नहीं जी, हमारे यहाँ तो लाइट जाती है! आप हिंदी की पुस्तकें पढ़ते हैं? ओ गॉड! आप कितने गंवार हैं?? आप चेतन भगत के नॉवेल्स नहीं पढ़ते? शेम ऑन यू! आप भाषांतरित चलचित्र (dubbed movies) देखते हैं? इसका मतलब आप देहाती हैं और आपको अंग्रेजी भाषा का कतई ज्ञान नहीं। यदि आप मेरी तरह वैश्विक संगीत में रूचि रखते हैं और आज-कल व्यापक अर्थ-हीन हनी सिंह के गीत नहीं सुनते हैं तो आप पाखंडी हैं! यह एक और विरोधाभास है। आप पूरा वाक्य हिंदी में बोल के देखिये, आपको पहले ही टोक दिया जाएगा। बस बस ये आप क्या बोल रहे हैं मेरी तो समझ में ही नहीं आया, सब सिर की ऊपर चला गया। कुछ ऐसा बोलिए की समझ में आये। और ऐसा नहीं की केवल तथा-कथित अभिजात वर्ग में ही यह संकीर्णता दिखाई देती है।  जैसा की मैंने ऊपर लिखा की एक रिक्शा या ऑटो वाला भी आपसे यही कहता दिखाई देगा। मेरे कार्यालय की कैब्स के चालक भी दायें या बायें नहीं समझते हैं। उनको बोलना पड़ता है की जी यहाँ से राईट ले लो या अगले कट से लेफ्ट मोड़ लेना!
उदाहरण तो अनेक हैं परन्तु इस चर्चा का अंत नहीं। आपको जान कर आश्चर्य होगा की फेसबुक पर मेरे २ मित्र रोमानिया एवं १ मित्र आर्मेनिया से हैं और वे तीनों हिंदी सीखने को लालायित रहते हैं। काश ऐसी बुद्धि हमारे युवा वर्ग में भी होती।
हिंदी दिवस की लौ प्रज्ज्वलित रखने के प्रयास में मेरी एक प्रविष्टि।

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